पिछले एक सप्ताह में भारत के अलग-अलग हिस्सों में टमाटर की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई है। मीडिया रिपोट के अनुसार कुछ इलाकों में टमाटर सौ रुपए प्रति किलो तक बिक रहे है।
हाल ही में टमाटर की बढ़ती कीमतों ने लोगों की परेशान को बढा दिया है। टमाटर की कीमत कहीं दोगुनी तो कहीं चार गुनी हो चुकी है, यही वजह है कि आज टमाटर की कीमत अचानक आसमान छूने लगी है।
इसकी जांच के लिए कृषि मंत्रालय की वेबसाइट छानने के बाद जो परिणाम सामने आया उसे सुनकर आप बिल्कुल हैरान हो सकते हैं। पिछले साल मई की तुलना में इस साल मई में ज्यादातर राज्यों की मंडियों में ज्यादा टमाटर पहुंचे, फिर भी कीमतें बढ़ीं।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल के 1 करोड़ 60 लाख टन की तुलना में इस साल 1 करोड़ 80 लाख टन टमाटर की पैदावार हुई है, फिर भी कीमतों में बढ़ोतरी ये समझना थोड़ा मुश्किल है।

भारत में आम आदमियों के लिए किसी भी सरकार के कामकाज की पहली कसौटी महंगाई है। महंगाई एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर सरकार का बहुत कम बस होता है, लेकिन अक्सर सरकारों की किस्मत का फैसला महंगाई से ही होता है। अब फिर से आम जनता पर महंगाई की मार पड़ी है, इस बार टमाटर व आलू के दाम तेजी से बढ़े हैं और दालों की कीमतें फिर आसमान छूने लगी हैं।
फिर महंगाई बढ़ना भी प्राकृत है, क्योंकि पिछले दो साल से मानसून खराब चल रहा है और देश में फसलों पर इसका असर पड़ा है। भारत में दालों की मांग पिछले साल में तेजी से बढ़ी है और उस अनुपात में उत्पादन कम हो रहा है।
भारत दुनिया के कई देशों से दाल आयात करता है। भारत में दालें प्रोटीन का मुख्य स्रोत हैं और बाकी देश दालों का उत्पादन भारत को निर्यात करने के लिए ही करते हैं। ऑस्ट्रेलिया, भारत को दाल सप्लाई करने वाला प्रमुख देश है, जहां इस साल फसल ठीक से नहीं हुई है। कुछ अफ्रीकी देशों से दालें आने की संभावना है, लेकिन अफ्रीकी फसल आने में वक्त लगेगा। जब किसी चीज की कमी हो जाती है, तो दाम इतने ऊपर चले जाते हैं कि ग्राहक बर्दाश्त नहीं कर पाते और जब किसी चीज की फसल अच्छी हो जाती है, तो वह मिट्टी के मोल बिकती है और किसान घाटा ले बैठते हैं। सरकार परिस्थिति गंभीर हो जाने पर तुरत-फुरत कुछ उपाय करती है, जिनमें से कई पूरी तरह बेअसर होते हैं या उनका असर कुछ अरसे बाद देखने को मिलता है, तब तक महंगाई अपना खेल कर चुकी होती है।

पिछले कुछ अरसे से अव्यवस्था और महंगाई ज्यादा देखी गया है। लगभग पिछले छह-सात साल से खुदरा महंगाई दर उस स्तर तक नहीं आई है, जिसे सामान्य कहा जा सके। कि भारत की खेती संबंधी नीतियां गेहूं और चावल के ईद-गिर्द घूमती रहीं और अन्य खाद्य सामग्रियों की उपेक्षा हुई। अब खाद्य सामग्री की मांग तेजी से बढ़ी है, जिसके मुकाबले उत्पादन और वितरण कमजोर पड़ गया। अब जरूरत फौरी उपायों के साथ दूरगामी इंतजाम की है, इस डांवांडोल स्थिति से छुटकारा मिल सके।
wefornews bureau
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