राफ़ेल सौदे में सीएजी ने उड़ाई पारदर्शिता की धज़्ज़ियाँ
राफ़ेल रिपोर्ट में सीएजी ने अपनी प्रतिष्ठा गँवाई, इसने जितने सवालों के जबाब दिये उसके ज़्यादा तो प्रश्न खड़े किये
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Read moreलोकतांत्रिक संस्थाओं के पतन का सबसे बड़ा सबूत है, ग़लत जानकारियों को ही विश्वसनीय बनाकर पेश करना
Read moreबालाकोट की बमबारी को प्रधानमंत्री ने ‘पायलट प्रोजेक्ट’ बताया है। उन्होंने कहा कि असली प्रोजेक्ट तो अभी शुरू होना बाक़ी है। पायलट प्रोजेक्ट का मतलब होता है किसी नयी योजना...
Read moreसंसद में सार्थक चर्चा नहीं हो रही। प्रक्रिया और परम्परा दम तोड़ चुकी है। नौकरशाही भी दमघोटू हाल में है। लोकतंत्र की लौ फड़फड़ा रही है।
Read moreताज़्ज़ुब की बात है कि क़ानून मंत्री और केन्द्र तथा बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों में बैठे गणमान्य लोग, सार्वजनिक तौर पर ऐसे बयान देते रहे हैं, जिनसे साफ़ तौर...
Read moreसंविधान के अनुच्छेद 32 के सीमित दायरे का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तय किया कि वो 36 राफ़ेल विमानों की ख़रीदारी पर सवाल नहीं खड़े करेगा। कोर्ट के...
Read moreदेश की संस्थाओं से उठने वाले स्वतंत्र आवाज़ों का गला घोंटा जा रहा है। इसीलिए जिन्हें क़ानून के राज की दुहाई देनी चाहिए वो उनके साथ खड़े मिलते हैं, जिनका...
Read moreआधार पर फ़ैसला सुनाते वक़्त सुप्रीम कोर्ट ने ग़रीब और सम्पन्न के बीच जो फ़र्क़ देखा है, वो चिन्ताजनक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी नागरिक को मिलने...
Read moreकाग़ज़ों पर कोई नीति भले ही शानदार लगे, लेकिन उसे सफलतापूर्वक लागू करना ही सबसे अहम है। युगान्कारकारी नीतियों का ऐलान करने से पहले ज़मीनी हक़ीक़त का जायज़ा लेना बेहद...
Read moreतकनीक यदि सुरक्षित हाथों में होगी तो जनहित के लिए वरदान बनेगी, लेकिन यदि ग़लत हाथों में पड़ जाए तो ऐसा नुकसान करेगी जिसे सोचना भी मुश्किल है। तकनीक की...
Read moreसतर्क और सक्रिय न्यायपालिका की बदौलत ही नागरिकों के बुनियादी और संवैधानिक अधिकारों की हिफ़ाज़त हो पाती है। ऐसी सतर्कता के बग़ैर लोकतंत्र जीवित नहीं रह सकता।
Read moreबीजेपी और पीडीपी का गठबन्धन अपने जन्म से ही बेमेल था। दोनों की विचारधाराओं के बीच उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव जैसी दूरी थी। इस गठजोड़ को बनाने के लिए नरेन्द्र...
Read moreलोकतंत्र को विनाश से बचाने के लिए हमें आमसहमति बनाकर क़ानून को बदलना होगा
Read moreयदि सुप्रीम कोर्ट ने दूरदर्शिता दिखाते हुए विश्वास मत हासिल करने के लिए 19 मई का वक़्त तय नहीं किया होता तो विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त की रोकथाम बेहद मुश्किल होती।...
Read moreवुहान सम्मेलन से सिर्फ़ भारतीय अर्थव्यवस्था की कमज़ोरी और लाचारी ज़ाहिर हुई
Read moreमोदी सरकार ने जिन तर्कों, तथ्यों और आँकड़ों के आधार पर उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस के.एम. जोसफ़ को सुप्रीम कोर्ट भेजने का विरोध किया है वो हरेक कसौटी...
Read moreविपक्ष पर राजनीति करने का आरोप लगाया हास्यास्पद है। सच तो ये है कि जाँच से बचने के लिए सरकार ही राजनीति कर रही है।
Read moreबीते चार सालों में हमारे संवैधानिक लोकतंत्र की दो अहम विशेषताओं का पतन हुआ है। पहला, क़ानून के सर्वोपरि होने की धारणा पर हमले हुए हैं। दूसरा, क़ानूनी प्रक्रिया का...
Read moreघोटालेबाज़ जनता का पैसा हड़पकर अरबपति बन जाते हैं। भारत की सरकारी बैंकिंग प्रणाली से उन्हें पूरी मदद मिलती है।
Read moreहमारे लोकतंत्र की बुनियाद उन उदार मूल्यों पर आधारित है, जिसमें क़ानून का राज होगा और अदालतें इसे निष्पक्ष होकर लागू करेंगी। लेकिन आज उदार विचारों को शक़ की नज़र...
Read moreप्रस्तावित तीन तलाक विधेयक, सियासी मौक़ापरस्ती की एक और मिसाल है, जिसका मक़सद सिर्फ़ चुनावी फ़ायदा उठाना है।
Read moreसाल 2014 से 2017 के जाते-जाते हिन्दुस्तान की रंगत बहुत बदल गयी। इसीलिए 2018 का स्वागत करते वक़्त हमें ज़रूर समझना चाहिए कि अब हम कहाँ खड़े हैं? बीते साल...
Read more2जी फ़ैसले से साबित हो चुका है कि सारा क़सूर सीएजी और सुप्रीम कोर्ट की अदूरदर्शिता का है! लेकिन विपक्ष भी कोई कम गुनाहगार नहीं, जिसने 2जी के नाम पर...
Read moreगुजरात मॉडल का हर वक़्त बख़ान करने वाले नरेन्द्र मोदी को गुजरात में प्रचार के लिए इतना अधिक वक़्त लगाना पड़ा, मानो वो देश के प्रधानमंत्री नहीं बल्कि राज्य के...
Read moreराजनीति में संख्या यानी अंकगणित, बहुत मायने रखती है। चुनाव में बीजेपी जीती है। हालाँकि गुजरात में उसकी संख्या कम हो गयी। हिमाचल को काँग्रेस से छीन लिया गया। जब...
Read moreहिन्दूवाद एक जीवनशैली है। इसीलिए इसे विचारधारा के दायरे में नहीं बाँधा जा सकता। जब भी ऐसा करने की कोशिश की जाएगी, तब हिन्दूवाद की आत्मा नष्ट हो जाएगी।
Read moreदेश के व्यापारिक माहौल का जश्न हम तभी मना सकते हैं जब असंगठित क्षेत्र के लघु और मझोले व्यापारी ये महसूस करने लगें कि उनके लिए वाक़ई, व्यापार करना आसान...
Read moreSenior Congress leader and former Union minister Kapil Sibal प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऐसे ‘नये भारत’ का वादा किया था जो भ्रष्टाचार रहित, कारोबार को प्रोत्साहित...
Read moreऐसे मनमानी भरे अदालती आदेशों के जारी किये जाने पर सुप्रीम कोर्ट कई बार नाराज़गी जता चुका है। हाल ही में प्रोफेसर काँचा इलैया लिखित पुस्तक ‘सामाजिक स्मगलुरुलु कोमाटोल्लु’ पर...
Read moreएनपीए की समस्या के लिए अदालतों के वो फ़ैसले ज़िम्मेदार हैं, जिनके ज़रिये स्पैक्ट्रम और कोयला खदानों के आबंटन को रद्द किया गया था। अति-उत्साही सीएजी, रक्त-पिपासु मीडिया, कुएँ के...
Read moreभविष्य सिर्फ़ उनकी राह देखता है जो नयी सरहदें तय करने के लिए निकलते हैं। इस विजय यात्रा की बुनियाद उस माहौल में छिपी होती है जहाँ नये आविष्कारों का...
Read moreमोदी राज का उस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से प्रभावित होना और भी घातक है जिसकी विकृत विचारधारा सरकार पर थोपी जाती है और उसकी ही पैरोकारी की जाती है।
Read moreपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन ने बिल्कुल सही राह दिखायी है कि हमें ऐसी सामाजिक और आर्थिक नीतियाँ बनानी चाहिए जिससे विकास का फ़ायदा हरेक वर्ग और तबके को मिल सके।
Read moreचीफ़ जस्टिस को प्रधानमंत्री के सामने सार्वजनिक तौर पर ये क्यों कहना पड़ता है कि छुट्टियों में तीन अहम मामलों की सुनवाई की जाएगी? किस आधार पर तीन ख़ास मामलों...
Read moreनयी दिल्ली को इस बात का अहसास होना ज़रूरी है कि वीर रस से भरपूर भाषणों से बात नहीं बनने वाली।
Read moreअर्थव्यवस्था गम्भीर संकट में है। विकास के सभी मानक लगातार गिर रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2017-18 की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून के दौरान तो विकास दर गिरकर 5.7...
Read moreताज़ा अनुभवों के मुताबिक, संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण में नाकाम साबित हो रहे हैं हमारे राज्यपाल
Read moreतकनीकों की वजह से हमारी ज़िन्दगी बहुत आरामदायक बन पायी है। लेकिन तकनीक में ही हमारी तबाही के बीज भी मौजूद हैं। इतिहास गवाह है कि हरेक तकनीकी क्रान्ति ने...
Read moreउन्मादियों के ‘अच्छे दिन’ में इंसाफ़, गरिमा और बहस की गुंज़ाइश ही नहीं!
Read moreजन स्वास्थ्य से जुड़ी सरकारी उदासीनता को मिटाये बग़ैर गोरखपुर जैसे हादसों से बचाव नहीं
Read moreसदियों से सामाजिक सुधार की प्रक्रिया बहुत धीमी और कष्टकारी रही है। 500 साल पहले मार्टिन लूथर किंग ने कैथोलिक चर्च में सुधार लाने की कोशिश की थी। फिर भी...
Read moreआज भ्रामक तस्वीरों या वीडियो या ‘टेक्स्ट’ को इस ढंग से फैलाया जा सकता है कि उसके दर्शक या पाठक उसे ही सच समझने लगें।
Read moreआज यहाँ भय का राज है, विरोध को कुचलने की मानसिकता है
Read moreनिजता के अधिकार को लेकर दुनिया भर के लोकतंत्र में ज़बरदस्त बहस छिड़ी हुई है। संचार क्रान्ति से जुड़ी उन्नत तकनीकों ने इस बहस को ख़ासा तूल दिया है। क्योंकि...
Read moreभारत को अभी निष्पक्ष मीडिया, स्वतंत्र न्यायपालिका, प्रमाणिक जाँच एजेंसियाँ, ईमानदार सरकारी अफ़सरों के अलावा एक ऐसे अर्थतंत्र की बेहद ज़रूरत है जिसे पुख़्ता बैंकिंग आधार की गति मिले।
Read moreनोटबन्दी से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े कई सवाल ऐसे हैं, जिन्हें मोदी सरकार से पूछना बेहद ज़रूरी है
Read moreआज यदि अम्बेडकर हमारे बीच होते तो वो इस पद के लिए आदर्श व्यक्ति होते। इसलिए नहीं कि वो दलित थे, बल्कि वो जातिवाद, कट्टरवाद और धर्मान्धता के धुर-विरोधी थे।...
Read moreमोदी के लिए सरकारी तंत्र का इकलौता मतलब है ‘आत्म-प्रचार’, जिसकी उपयोगिता तरह-तरह की घोषणाएँ करने और अपनी उपलब्धियों का सच्चा-झूठा और जायज़-नाजायज़ गुणगान करने के सिवाय और कुछ नहीं...
Read moreबैंकों का 11 प्रतिशत क़र्ज़ा डूब चुका है। इससे क़र्ज़ पाना मुश्किल हो गया है। माँग में कमी होने की वजह से क़र्ज़ लेने की गतिविधि का बुरी तरह से...
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